भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बसेरा / कविता वाचक्नवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता वाचक्नवी }} <poem> '''बसेरा''' माँ! ‘साड्डा चिड़ि...)
 
पंक्ति 15: पंक्ति 15:
 
तिनके जोड़ने सिखाए थे तुमने]
 
तिनके जोड़ने सिखाए थे तुमने]
 
फिर
 
फिर
एक नीड़.......
+
एक नीड़...
लंबी उडा़न.....
+
लंबी उडा़न...
 
इधर उजड़ गया घोंसला,
 
इधर उजड़ गया घोंसला,
 
जो किसी नींव गडे़ घर की
 
जो किसी नींव गडे़ घर की
पंक्ति 25: पंक्ति 25:
 
जोड़ने लगा तिनके
 
जोड़ने लगा तिनके
 
जुड़ने लगा नीड़,
 
जुड़ने लगा नीड़,
आकाश में....
+
आकाश में...
हवा में....
+
हवा में...
लहरों में....
+
लहरों में...
 
एक दिन
 
एक दिन
 
शून्य में लय हो गया
 
शून्य में लय हो गया
पंक्ति 33: पंक्ति 33:
 
उजड़ गया
 
उजड़ गया
 
डूब गया,
 
डूब गया,
तिनका-तिनका था
+
:::तिनका-तिनका था
छितरा गया,
+
:::छितरा गया,
बस!!
+
:::बस!!
 
उड़ जाना है अब।
 
उड़ जाना है अब।
  
चिड़िया! चल उड़....
+
चिड़िया! चल उड़...
 
</poem>
 
</poem>

01:41, 6 जून 2009 का अवतरण

बसेरा

माँ!
‘साड्डा चिड़ियाँ दा चम्बा...’
किसी दिन चबा गए
श्वान, मार्जार और हिंस्र भूखे पशु
[एक-एक कर
पाँखें पसारी थीं न जिस दिन
उससे भी पहले
तिनके जोड़ने सिखाए थे तुमने]
फिर
एक नीड़...
लंबी उडा़न...
इधर उजड़ गया घोंसला,
जो किसी नींव गडे़ घर की
छत पर बनाया था,
तिनके जोड़ने का अभ्यासी मन
नदी किनारे, डालें पसारे
किसी वृक्ष पर
जोड़ने लगा तिनके
जुड़ने लगा नीड़,
आकाश में...
हवा में...
लहरों में...
एक दिन
शून्य में लय हो गया
उड़ गया
उजड़ गया
डूब गया,
तिनका-तिनका था
छितरा गया,
बस!!
उड़ जाना है अब।

चिड़िया! चल उड़...