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माँ! / कविता वाचक्नवी

21 bytes added, 20:07, 5 जून 2009
पूरा घिरा
प्राणतल मेरा।
::: अभ्यासों से ::: पुनर्जन्म पा-पा ::: मिट जातीं ::: ईखों की अजस्र ::: मृदुधारा को ::: लपटें ::: निःशेष करातीं।
</poem>
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