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+ | मैंने 'नागयज्ञ' कविता को ठीक कर दिया है। आप कविता कोश में नागयज्ञ कविता पर जाकर 'बदलें' पर क्लिक करें और खोलकर देखें कि आपकी समस्या को हल करने के लिए मैंने क्या किया है। वैसे आपको बता दूँ कि जब कुछ स्पेस देकर किसी पंक्ति को शुरू करना हो तो हम लोग दो बिन्दुओं (:) यानी विसर्ग का इस्तेमाल करते हैं। आप भी ऎसा ही करिये। | ||
+ | सादर | ||
+ | अनिल जनविजय |
16:44, 6 जून 2009 के समय का अवतरण
When I am finalising the poem, the blank spaces in the poem do not synchronise. The poem is published in sameline. Can I get any help? |रचनाकार=कविता वाचक्नवी नागयज्ञ
जो हमारी
धड़कनों की
गति समझने में
रहे असफल
उन्हें क्या ज्ञात है -
स्फोट में ही
प्राण अपने
जागते हैं।
दहकते चोले बसंती
हैं नहीं वैराग्य-भर को,
तक्षकों के प्राण लेने को लपकती
ये भभकती
अग्नि की झर-झर शिखाएँ हैं,
हमारी देह-मन में
दहकती हैं
श्वास पीकर
और भी फुंकारती हैं।
अब कपालों का करेंगे
खूब मोचन
वेदियाँ हुँकारती हैं।
चंद्रमौलेश्वर जी!
मैंने 'नागयज्ञ' कविता को ठीक कर दिया है। आप कविता कोश में नागयज्ञ कविता पर जाकर 'बदलें' पर क्लिक करें और खोलकर देखें कि आपकी समस्या को हल करने के लिए मैंने क्या किया है। वैसे आपको बता दूँ कि जब कुछ स्पेस देकर किसी पंक्ति को शुरू करना हो तो हम लोग दो बिन्दुओं (:) यानी विसर्ग का इस्तेमाल करते हैं। आप भी ऎसा ही करिये।
सादर
अनिल जनविजय