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जीवन / कविता वाचक्नवी
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,
11:03, 6 जून 2009
}}
<poem>
'''जीवन'''
जीवन तो
यों
चुक गया।
:::
यह तपते अंगारों पर
:::
नंगे पाँवों
:::
हँस-हँस चलने
:::
बार-बार
:::
प्रतिपल जलने का
:::
नट-नर्तन है।
</poem>
अनिल जनविजय
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