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सकल कहहिं कब होइहि काली।बिघन मनावहिं देव कुचाली।।३।।<br>
तिन्हहि सोहाइ न अवध बधावा।चोरहि चंदिनि राति न भावा।।<b>
सारद बोलि बिनय सुर करहीं। बारहिं करहीं।बारहिं बार पाय लै परहीं।।४।।<br>
दो0-बिपति हमारि बिलोकि बड़ि मातु करिअ सोइ आजु।<b>
रामु जाहिं बन राजु तजि होइ सकल सुरकाजु।।11।।<br><br>
पुनि अस कबहुँ कहसि घरफोरी। तब धरि जीभ कढ़ावउँ तोरी।।<br>
दो0-काने खोरे कूबरे कुटिल कुचाली जानि।<br>
तिय बिसेषि पुनि चेरि कहि भरतमातु मुसुकानि।।14।।<br> &#8211;*&#8211;*&#8211;<br>
प्रियबादिनि सिख दीन्हिउँ तोही। सपनेहुँ तो पर कोपु न मोही।।<br>
सुदिनु सुमंगल दायकु सोई। तोर कहा फुर जेहि दिन होई।।<br>
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