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"झील / रामधारी सिंह "दिनकर"" के अवतरणों में अंतर

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मत छुओ इस झील को।  
 
कंकड़ी मारो नहीं,  
 
कंकड़ी मारो नहीं,  
 
पत्तियाँ डारो नहीं,  
 
पत्तियाँ डारो नहीं,  

12:34, 27 अगस्त 2020 का अवतरण

मत छुओ इस झील को।
कंकड़ी मारो नहीं,
पत्तियाँ डारो नहीं,
फूल मत बोरो।
और कागज की तरी इसमें नहीं छोड़ो।

खेल में तुमको पुलक-उन्मेष होता है,
लहर बनने में सलिल को क्लेश होता है।