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रश्मिरथी / तृतीय सर्ग / भाग 4
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16:26, 25 जून 2008
पड़ जाती मेरी दृष्टि जिधर, हँसने लगती है सृष्टि उधर!
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दोनों पुकारते थे 'जय-जय'!
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अभिलाष पुरोहित