Changes

कविता-5 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर

75 bytes added, 15:13, 21 जुलाई 2010
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
|संग्रह=
}}[[Category:अंग्रेज़ी भाषा]]{{KKCatKavita‎}}<poemPoem>
रोना बेकार है
व्‍यर्थ है यह जलती अग्नि ईच्‍छाओं इच्‍छाओं की।
सूर्य अपनी विश्रामगाह में जा चुका है।
जंगल में धुंधलका है और आकाश मोहक है।
उदास आंखों आँखों से देखते आहिस्‍ता कदमों क़दमों से
दिन की विदाई के साथ
तारे उगे जा रहे हैं।
तुम्‍हारे दोनों हाथों को अपने हाथों में लेते हुए
और अपनी भूखी आंखों आँखों में तुम्‍हारी आंखेां आँखों को
कैद करते हुए,
ढूंढते ढूँढते और रोते हुए,कि कहां कहाँ हो तुम,कहां कहाँ ओ,कहां कहाँ हो...
तुम्‍हारे भीतर छिपी
वह अनंत अग्नि कहां कहाँ है...
जैसे गहन संध्‍याकाश को आकेला अकेला तारा अपने अनंतरहस्‍येां रहस्‍यों के साथ स्‍वर्ग का प्रकाश, तुम्‍हारी आंखेां आँखों मेंकांप काँप रहा है,जिसके अंतर में गहराते रहस्‍यों के बीचवहां वहाँ एक आत्‍मस्‍तंभ चमक रहा है।
अवाक एकटक यह सब देखता हूं हूँ मैं
अपने भरे हृदय के साथ
अनंत गहराई में छलांग लगा देता हूंहूँ,
अपना सर्वस्‍व खोता हुआ।
'''अंग्रेजी अंग्रेज़ी से अनुवाद - कुमार मुकुल'''
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,279
edits