भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"सितारा / पाब्लो नेरूदा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
[[Category:स्पानी भाषा]] | [[Category:स्पानी भाषा]] | ||
− | + | <poem> | |
अरे, मैं कभी वापस नहीं गया | अरे, मैं कभी वापस नहीं गया | ||
− | |||
कचोट भी कोई नहीं है अब | कचोट भी कोई नहीं है अब | ||
− | + | वापस न जाने की । | |
− | + | ||
− | + | ||
और बन्दरगाह को चूमती लहर | और बन्दरगाह को चूमती लहर | ||
− | |||
उसके जलमार्ग | उसके जलमार्ग | ||
− | |||
नमक और जोंक की तरह | नमक और जोंक की तरह | ||
− | |||
मैंने इस ख़ुदमुख़्तार ने | मैंने इस ख़ुदमुख़्तार ने | ||
− | |||
तट के इस टहलुआ ने | तट के इस टहलुआ ने | ||
− | + | सौंप दिया ख़ुद को । | |
− | + | ||
− | + | ||
ज़ंजीर बांध दी अपने आश्रय से । | ज़ंजीर बांध दी अपने आश्रय से । | ||
− | |||
अब कोई आज़ादी नहीं हमारे लिए-- | अब कोई आज़ादी नहीं हमारे लिए-- | ||
− | |||
हम जो रहस्य के अंश-मात्र हैं, | हम जो रहस्य के अंश-मात्र हैं, | ||
− | |||
कोई रास्ता नहीं बचा | कोई रास्ता नहीं बचा | ||
− | + | खुदी तक | |
− | + | खुदी की चट्टान तक लौटने का । | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
कोई सितारा बाक़ी नहीं बचा | कोई सितारा बाक़ी नहीं बचा | ||
− | + | सागर के सिवा । | |
− | + | </poem> |
21:33, 23 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
|
अरे, मैं कभी वापस नहीं गया
कचोट भी कोई नहीं है अब
वापस न जाने की ।
और बन्दरगाह को चूमती लहर
उसके जलमार्ग
नमक और जोंक की तरह
मैंने इस ख़ुदमुख़्तार ने
तट के इस टहलुआ ने
सौंप दिया ख़ुद को ।
ज़ंजीर बांध दी अपने आश्रय से ।
अब कोई आज़ादी नहीं हमारे लिए--
हम जो रहस्य के अंश-मात्र हैं,
कोई रास्ता नहीं बचा
खुदी तक
खुदी की चट्टान तक लौटने का ।
कोई सितारा बाक़ी नहीं बचा
सागर के सिवा ।