भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दुर्दिनों में कविता-4 / उदय प्रकाश" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=रात में हारमोनिययम / उदय प्रकाश
 
|संग्रह=रात में हारमोनिययम / उदय प्रकाश
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 +
<poem>
 
कटघरे में चीख़ता है बंदी
 
कटघरे में चीख़ता है बंदी
 
 
’योर आनर,
 
’योर आनर,
 
 
मुझे नहीं मैकाले को भेजना चाहिए
 
मुझे नहीं मैकाले को भेजना चाहिए
 
 
कालापानी’
 
कालापानी’
 
  
 
’योर आनर,
 
’योर आनर,
 
 
इतिहास में और भविष्य में फाँसी का हुक्म
 
इतिहास में और भविष्य में फाँसी का हुक्म
 
 
जनरल डायर के लिए हो’
 
जनरल डायर के लिए हो’
 
  
 
’मुज़रिम मैं नहीं
 
’मुज़रिम मैं नहीं
 
 
हिज हाईनेस,
 
हिज हाईनेस,
 
 
मुज़रिम नाथूराम है’
 
मुज़रिम नाथूराम है’
 
 
  
 
नेपथ्य में से निकलते हैं कर्मचारी
 
नेपथ्य में से निकलते हैं कर्मचारी
 
 
सिर पर डालकर काला कनटोप
 
सिर पर डालकर काला कनटोप
 
 
उसे ले जाते हैं नेपथ्य की ओर
 
उसे ले जाते हैं नेपथ्य की ओर
 
  
 
न्यायाधीश तोड़ता है क़लम
 
न्यायाधीश तोड़ता है क़लम
 
 
न्यायविद लेते हैं जमुहाइयाँ
 
न्यायविद लेते हैं जमुहाइयाँ
 
  
 
दुर्दिनों में ऎसे ही हुआ करता है न्याय
 
दुर्दिनों में ऎसे ही हुआ करता है न्याय
 +
</poem>

00:39, 11 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

कटघरे में चीख़ता है बंदी
’योर आनर,
मुझे नहीं मैकाले को भेजना चाहिए
कालापानी’

’योर आनर,
इतिहास में और भविष्य में फाँसी का हुक्म
जनरल डायर के लिए हो’

’मुज़रिम मैं नहीं
हिज हाईनेस,
मुज़रिम नाथूराम है’

नेपथ्य में से निकलते हैं कर्मचारी
सिर पर डालकर काला कनटोप
उसे ले जाते हैं नेपथ्य की ओर

न्यायाधीश तोड़ता है क़लम
न्यायविद लेते हैं जमुहाइयाँ

दुर्दिनों में ऎसे ही हुआ करता है न्याय