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{{KKRachna
|रचनाकार= नईम |संग्रह=}}{{KKCatNavgeet}}<poem>अपने हर अस्वस्थ समय को 
मौसम के मत्थे मढ़ देते
 निपट झूठ को सत्य -कथा सा– 
सरेआम हम तुम मढ़ लेते
 
तनिक नहीं हमको तमीज हंसने–रोने का
 
स्वांग बखूबी कर लेते भोले होने का
 
जिनकी मिलती पीठें खाली¸
 
बिला इजाजत हम चढ़ लेते
 
वर्ण¸ वर्ग¸ नस्लों का मारा हुआ ज़माना¸
 
हमसे बेहतर बना न पाता कोई बहाना
 
भाग्य लेख जन्मांध यहां पर
 
बड़े सलीके से पढ़ लेते
 
दर्द कहीं पर और कहीं इज़हार कर रहे
 
मरने से पहले हम तुम सौ बार मर रहे
 
फ्रेमों में फूहड़ अतीत को काट–छांट कर¸
 
बिला शकशुबह हम भर लेते
 
इधर रहे वो बुला
 
उधर को हम बढ़ लेते
</poem>
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