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मीरा हो पाती / अभिज्ञात
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17:27, 4 नवम्बर 2009
|रचनाकार=अभिज्ञात
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{{KKCatKavita}}
<poem>दुनिया का बाज़ार भला है
खरे परखी हैं व्यापारी
तेरी एक खुशी के बदले
काश कि तुम मीरा हो पाती
मैं घनश्याम अगर हो पाऊँ।
</poem>
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