भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कोई तो पीके निकलेगा... / आसी ग़ाज़ीपुरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से। दरे-पीरेमुग़ाँ पर म...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से।
+
{{KKGlobal}}
 +
{{KKRachna
 +
|रचनाकार= आसी ग़ाज़ीपुरी
 +
}}
 +
 
 +
<poem>कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से।
  
 
दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥
 
दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥
पंक्ति 21: पंक्ति 26:
  
 
कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥
 
कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥
 +
</poem>

18:28, 20 जुलाई 2009 का अवतरण

कोई तो पीके निकलेगा, उडे़गी कुछ तो बू मुँह से।

दरे-पीरेमुग़ाँ पर मैपरस्ती चलके बिस्तर हो॥


किसी के दरपै ‘आसी’ रात रो-रोके यह कहता था--

कि "आखि़र मैं तुम्हारा बन्दा हूँ, तुम बन्दापरवर हो"॥


            ****


तुम्हीं सच-सच बता दो कौन था शिरीं की सूरत में।

कि मुश्तेख़ाक की हसरत में कोई कोहकन क्यों हो॥



टुकडे़ होकर जो मिली, कोहकनो-मजनूँ को।

कहीं मेरी ही वो फूटी हुई तक़दीर न हो॥