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"गुरु नानकदेव / परिचय" के अवतरणों में अंतर

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सिख धर्म के प्रवर्तक नानकदेव का जन्म अमृतसर से 30 मील दूर तलवंडी गाँव में हुआ, जिसे आजकल ननकाना साहेब कहते हैं। ये जाति के खत्री थे। इन्होंने बचपन में ही पंजाबी, ब्रजभाषा, संस्कृत और फारसी की शिक्षा ग्रहण की थी। कहते हैं ये एक मोदी की दुकान पर नौकरी करते थे, जहाँ तेरह की संख्या में तौल करते हुए ये 'तेरा-तेरा कहते-कहते ईश्वर सब तोरा ही है, इस ध्यान में मग्न हो गए और ग्राहकों को अधिक तौल दिया, जिससे इन्हें नौकरी से हटा दिया गया।  
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सिख धर्म के प्रवर्तक नानकदेव का जन्म अमृतसर से 30 मील दूर तलवंडी गाँव में हुआ, जिसे आजकल ननकाना साहेब कहते हैं। ये जाति के खत्री थे। इनके पिता का नाम कस्तूरचंद और माँ का नाम तृप्ता था .इनका विवाह १५४५ में सुलक्षणा नाम की कन्या से हुआ जिससे श्रीचंद एवं लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र हुए . 
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इन्होंने बचपन में ही पंजाबी, ब्रजभाषा, संस्कृत और फारसी की शिक्षा ग्रहण की थी। कहते हैं ये एक मोदी की दुकान पर नौकरी करते थे, जहाँ तेरह की संख्या में तौल करते हुए ये 'तेरा-तेरा कहते-कहते ईश्वर सब तोरा ही है, इस ध्यान में मग्न हो गए और ग्राहकों को अधिक तौल दिया, जिससे इन्हें नौकरी से हटा दिया गया।  
  
 
नानक ने घर-बार छोड दिया तथा एक मित्र 'मर्दाना के साथ ईश्वर की खोज में देश-विदेश भ्रमण किया। इन्होंने शेख फरीद का भी सत्संग किया था। इनकी रचनाएँ 'गुरु ग्रंथ साहब में संग्रहीत हैं, जिनमें 'जपु जी अधिक प्रसिध्द है। गुरु-भक्ति, नाम-स्मरण, एकेश्वरवाद, परमात्मा की व्यापकता तथा विश्व-प्रेम इनके प्रमुख धार्मिक सिध्दांत हैं। इनकी भाषा पंजाबी मिश्रित हिंदी है। सिख पंथ के सभी गुरुओं ने अपनी रचनाओं में अपना नाम न देकर लेखक के स्थान पर 'नानक नाम का ही प्रयोग किया है।
 
नानक ने घर-बार छोड दिया तथा एक मित्र 'मर्दाना के साथ ईश्वर की खोज में देश-विदेश भ्रमण किया। इन्होंने शेख फरीद का भी सत्संग किया था। इनकी रचनाएँ 'गुरु ग्रंथ साहब में संग्रहीत हैं, जिनमें 'जपु जी अधिक प्रसिध्द है। गुरु-भक्ति, नाम-स्मरण, एकेश्वरवाद, परमात्मा की व्यापकता तथा विश्व-प्रेम इनके प्रमुख धार्मिक सिध्दांत हैं। इनकी भाषा पंजाबी मिश्रित हिंदी है। सिख पंथ के सभी गुरुओं ने अपनी रचनाओं में अपना नाम न देकर लेखक के स्थान पर 'नानक नाम का ही प्रयोग किया है।

14:52, 30 अगस्त 2012 का अवतरण

सिख धर्म के प्रवर्तक नानकदेव का जन्म अमृतसर से 30 मील दूर तलवंडी गाँव में हुआ, जिसे आजकल ननकाना साहेब कहते हैं। ये जाति के खत्री थे। इनके पिता का नाम कस्तूरचंद और माँ का नाम तृप्ता था .इनका विवाह १५४५ में सुलक्षणा नाम की कन्या से हुआ जिससे श्रीचंद एवं लक्ष्मीचंद नाम के दो पुत्र हुए .

इन्होंने बचपन में ही पंजाबी, ब्रजभाषा, संस्कृत और फारसी की शिक्षा ग्रहण की थी। कहते हैं ये एक मोदी की दुकान पर नौकरी करते थे, जहाँ तेरह की संख्या में तौल करते हुए ये 'तेरा-तेरा कहते-कहते ईश्वर सब तोरा ही है, इस ध्यान में मग्न हो गए और ग्राहकों को अधिक तौल दिया, जिससे इन्हें नौकरी से हटा दिया गया।

नानक ने घर-बार छोड दिया तथा एक मित्र 'मर्दाना के साथ ईश्वर की खोज में देश-विदेश भ्रमण किया। इन्होंने शेख फरीद का भी सत्संग किया था। इनकी रचनाएँ 'गुरु ग्रंथ साहब में संग्रहीत हैं, जिनमें 'जपु जी अधिक प्रसिध्द है। गुरु-भक्ति, नाम-स्मरण, एकेश्वरवाद, परमात्मा की व्यापकता तथा विश्व-प्रेम इनके प्रमुख धार्मिक सिध्दांत हैं। इनकी भाषा पंजाबी मिश्रित हिंदी है। सिख पंथ के सभी गुरुओं ने अपनी रचनाओं में अपना नाम न देकर लेखक के स्थान पर 'नानक नाम का ही प्रयोग किया है।