भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भोजवन में पतझड़ / अजेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अजेय |संग्रह= }} <poem> मौसम में घुल गया है शीत बेशरम ऎ...)
 
 
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
|संग्रह=
 
|संग्रह=
 
}}
 
}}
 
+
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 
मौसम में घुल गया है शीत
 
मौसम में घुल गया है शीत

22:59, 1 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

मौसम में घुल गया है शीत
बेशरम ऎयार
छीन रहा वादियों की हरी चुनरी

लजाती ढलानें
हो रही संतरी
फिर पीली
और भूरी

मटमैला धूसर आकाश
नदी पारदर्शी
संकरी !

काँप कर सिहर उठी सहसा
कुछ आखिरी बदरंग पत्तियाँ
शाख से छूट उड़ी सकुचाती
खिड़की की काँच पर
चिपक गई एकाध !

दरवाजे की झिर्रियों से
सेंध मारता
वह आखिरी अक्तूबर का
बदमज़ा अहसास
ज़बरन लिपट गया मुझसे !

लेटी रहेगी अगले मौसम तक
एक लम्बी
सर्द
सफ़ेद
मुर्दा
लिहाफ़ के नीचे
एक कुनकुनी उम्मीद
कि कोंपले फूटेंगी
और लौटेगी
भोजवन में ज़िन्दगी ।


रचनाकाल : नैनगार 18-10-2005