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"दर्द..... / हरकीरत हकीर" के अवतरणों में अंतर

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ढोलक की ताल पर
 
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वह मटकी
 
वह मटकी
पावों में घुंघरु
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पाँवों में घुंघरु
 
छ्नछ्नाये
 
छ्नछ्नाये
 
उभार
 
उभार
 
थरथराये
 
थरथराये
जुबां
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ज़ुबां
 
होंठों पे फिराई
 
होंठों पे फिराई
 
चुम्बन
 
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बिकने लगा .....!!
 
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पूरी दुनियां में
 
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जैसे उस वक्त रात थी
 
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बाहर चला गया ....!!
 
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लालटेन की
 
लालटेन की
धीमी रौशनी में
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धीमी रोशनी में
 
उसने वक्त से कहा -
 
उसने वक्त से कहा -
 
मैं जीवन भर तेरी
 
मैं जीवन भर तेरी

10:23, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

(१)
ढोलक की ताल पर
वह मटकी
पाँवों में घुंघरु
छ्नछ्नाये
उभार
थरथराये
ज़ुबां
होंठों पे फिराई
चुम्बन
उछले
दर्द हाट में
बिकने लगा .....!!


(२)
पूरी दुनियां में
जैसे उस वक्त रात थी
वह अपनी दोनों
खाली कलाइयों को
एकटक देखती है
और फ़िर सामने पड़ी
चूड़ियों को ....

तभी
वक्त आहिस्ता से
दरवाज़ा खोल बाहर आया
कहने लगा ....
नचनिया सिर्फ़ भरे हुए
बटुवे को देखतीं हैं
कलाइयों को नहीं...

दर्द ने करवट बदली
और आंखों के रस्ते
चुपचाप ....
बाहर चला गया ....!!


(३)
लालटेन की
धीमी रोशनी में
उसने वक्त से कहा -
मैं जीवन भर तेरी
सेवा करुँगी
मुझे यहाँ से ले चल
वक्त हंस पड़ा
कहने लगा -
मैं तो पहले से ही
लूला हूँ ....
आधा घर का
आधा हाट का ....!!