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"सिलसिला. / केशव" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केशव |संग्रह=अलगाव / केशव }} {{KKCatKavita}} <poem>सुबह जागती ह...)
 
 
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::वही आदमीचलने के लिएसड़कों पर
 
::वही आदमीचलने के लिएसड़कों पर
 
::हैडलाईटस की तरह
 
::हैडलाईटस की तरह
कविताएँ
 
 
कविताएँ मुस्कुरा
 
::पौंछती हैं
 
उदासी का निःशब्द गहन
 
पककर फूटे घाव-सा रिसता
 
:::अन्तरालक्षणों की बंद पलकें
 
खुलती हैं
 
ज्यों मुस्काने फूल की:अधमुँदी दुनिया में
 
 
कभी-कभी बोलती हैअजनबी स्वरों में
 
:अँधे गायकों के साथ
 
कभी बतियाती हैं
 
::अंतरंग भाषा में
 
रोज़मर्रा ज़िन्दगी से
 
अपने न चाहने वालों के सामने
 
फैंकती है
 
::तुर्प चालें
 
और चाहने का ढोंग रचने वालों को
 
उखाड़ फैंकती है आमूल
 
गीली मिट्टी से उख़ड़े पौधे की तरह
 
चाहने वालों को
 
ले उड़ती हैं
 
आकाश यात्रा पर
 
समुद्र मंथन
 
के बादहलाहल तक पीने के लिए
 
कविताएँ
 
मुस्कुराती रहती हैं।
 
गर्भ मेंपीड़ा का अभिमाम लिये
 
 
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14:23, 22 अगस्त 2009 के समय का अवतरण

सुबह
जागती है
अखबार वाले की आवाज़ से
कारख़ाने के भोंपूसेशुरू होता
दिन
दोपहर
थूकती हैकाली चाय-सा
फाइलों का इतिहास
सस्ते चायघरों में
शाम फैंकती है
फालतू कागज़ों की तरह
कुछ मुस्कानें
और अचानक पत्नि के चेहरे से टकराता है
सिगरेट का खाली पैक़ेट
कोलतार-सी रातन्योन राशियों में
करती है गर्भ धारण
और गिरा देती है
अपने गर्भ सेफिर
वही आदमीचलने के लिएसड़कों पर
हैडलाईटस की तरह