भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नाल मढ़ाने चली मेढकी / अमरनाथ श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 7: पंक्ति 7:
  
 
कहा चौधरानी ने, हंसकर देखा दासी का गहना
 
कहा चौधरानी ने, हंसकर देखा दासी का गहना
 +
 
`नाल मढ़ाने चली मेढकी इस `कलजुग' का क्या कहना।'
 
`नाल मढ़ाने चली मेढकी इस `कलजुग' का क्या कहना।'
 +
  
 
पति जो हुआ दिवंगत तो क्या
 
पति जो हुआ दिवंगत तो क्या

21:06, 17 अक्टूबर 2006 का अवतरण

कवि: अमरनाथ श्रीवास्तव

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~

कहा चौधरानी ने, हंसकर देखा दासी का गहना

`नाल मढ़ाने चली मेढकी इस `कलजुग' का क्या कहना।'


पति जो हुआ दिवंगत तो क्या

रिक्शा खींचे बेटा भी

मां-बेटी का `जांगर' देखो

डटीं बांधकर फेंटा भी

`फिर भी सोचो क्या यह शुभ है चाकर का यूं खुश रहना।'

कहा चौधरानी ने, हंसकर देखा दासी का गहना


अबके बार मजूरी ज्यादा

अबके बार कमाई भी

दिन बहुरे तो पूछ रहे हैं

अब भाई-भौजाई भी

`कुछ भी है, नौकर तो नौकर भूले क्यों झुक कर रहना।'

कहा चौधरानी ने, हंसकर देखा दासी का गहना


कहा मालकिन ने वैसे तो

सब कुछ है इस दासी में

जाने क्यों अब नाक फुलाती

बचे-खुचे पर, बासी में

`पीतल की नथिया पर आखिर क्या गुमान मेरी बहना!'

कहा चौधरानी ने, हंसकर देखा दासी का गहना