Changes

शिलालेख / मनोज कुमार झा

1 byte removed, 17:24, 4 सितम्बर 2009
बिना पैसे के दिनों और
 बिना नींद की रातों की स्‍वरलिपियॉंस्वरलिपियॉंखुदी हैं आत्‍मा आत्मा पर। 
बने हैं निशान
 
जैसे फोंकियॉं छोडकर जाती हैं
पपीते के पेड़ों के हवाले।
पपीते के पेडों के हवाले।  फोंफियों की बांसुरियॉंबाँसुरियाँ
महकती हैं चंद सुरों तक
 
और फिर चटख जाती हैं।
 
दूर-दुर के बटोही
 रोकते हैं कदमक़दमइन सुरों की छॉंह छाँह में
पोंछते हैं भीगी कोर
 और बढ बढ़ जाते हैं नून-तेल-लकडी की तरफ।</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits