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विपर्यय / मनोज कुमार झा

4 bytes added, 17:21, 4 सितम्बर 2009
<poem>
रीढ मोडीरीढ़ मोड़ी
घुटने टेके
 बना घोडाघोड़ा बच्‍चे बच्चे बैठें 
करें खिलखिल
 
खिले सरसों
 
मन हरा हो
 
पर ये खट खट
 
किसके जूते
 
कौन सिर पे मूतता है
 
हे प्रभो, तूं सूतता है।
</poem>
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