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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=बशीर बद्र]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:गज़लग़ज़ल]][[Category:बशीर बद्र]]<poem>मेरे साथ तुम भी दुआ करो यूँ किसी के हक़ में बुरा न होकहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुदा न हो
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~मेरे घर से रात की सेज तक वो इक आँसू की लकीर हैज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो इसी तरफ़ से गया न हो
सर-ए-शाम ठहरी हुई ज़मीं, आसमाँ है झुका हुआइसी मोड़ पर मेरे साथ तुम भी दुआ करो यूँ किसी के हक़ में बुरा न हो <br>कहीं और हो न ये हादसा कोई रास्ते में जुदा वास्ते वो चराग़ ले कर खड़ा न हो <br><br>
मेरे घर से रात की सेज तक वो इक आँसू फ़रिश्ते आप ही ढूँढिये कहानियों की लकीर है <br>किताब मेंज़रा बढ़ के चाँद से पूछना वो इसी तरफ़ जो बुरा कहें न बुरा सुने कोई शख़्स उन से गया ख़फ़ा न हो <br><br>
सर-ए-शाम ठहरी हुई ज़मीं, आसमाँ है झुका हुआ <br>वो विसाल हो के फ़िराक़ हो तेरी आग महकेगी एक दिनइसी मोड़ पर मेरे वास्ते वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग़ ले कर खड़ा बन के जला न हो <br><br>
वो फ़रिश्ते आप ही ढूँढिये कहानियों मुझे यूँ लगा कि ख़ामोश ख़ुश्बू के होँठ तितली ने छू लियेइन्ही ज़र्द पत्तों की किताब ओट में <br>जो बुरा कहें न बुरा सुने कोई शख़्स उन से ख़फ़ा फूल सोया हुआ न हो <br><br>
वो विसाल हो के फ़िराक़ हो तेरी आग महकेगी एक दिन <br>वो गुलाब बन के खिलेगा क्या जो चराग़ बन के जला न हो <br><br> मुझे यूँ लगा कि ख़ामोश ख़ुश्बू के होँठ तितली ने छू लिये <br>इन्ही ज़र्द पत्तों की ओट में कोई फूल सोया हुआ न हो <br><br> इसी एहतियात में मैं रहा, इसी एहतियात में वो रहा <br>वो कहाँ कहाँ मेरे साथ है किसी और को ये पता न हो <br><br/poem>