"फूल / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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− | सुधा से सुषमा से छविमान | + | मधुरिमा के, मधु के अवतार |
− | आंसुओं में सहमे अभिराम | + | सुधा से, सुषमा से, छविमान, |
− | तारकों से हे मूक अजान! | + | आंसुओं में सहमे अभिराम |
− | सीख कर मुस्काने की बान | + | तारकों से हे मूक अजान! |
− | कहां आऎ हो कोमल प्राण! | + | सीख कर मुस्काने की बान |
+ | कहां आऎ हो कोमल प्राण! | ||
− | स्निग्ध रजनी से लेकर हास | + | स्निग्ध रजनी से लेकर हास |
− | रूप से भर कर सारे अंग | + | रूप से भर कर सारे अंग, |
− | नये पल्लव का घूंघट डाल | + | नये पल्लव का घूंघट डाल |
− | अछूता ले अपना मकरंद | + | अछूता ले अपना मकरंद, |
− | ढूढं पाया कैसे यह देश | + | ढूढं पाया कैसे यह देश? |
− | स्वर्ग के हे मोहक संदेश! | + | स्वर्ग के हे मोहक संदेश! |
− | रजत किरणों से नैन पखार | + | रजत किरणों से नैन पखार |
− | अनोखा ले सौरभ का भार | + | अनोखा ले सौरभ का भार, |
− | छ्लकता लेकर मधु का कोष | + | छ्लकता लेकर मधु का कोष |
− | चले आऎ एकाकी पार | + | चले आऎ एकाकी पार; |
− | कहो क्या आऎ हो पथ भूल | + | कहो क्या आऎ हो पथ भूल? |
− | मंजु छोटे मुस्काते फूल! | + | मंजु छोटे मुस्काते फूल! |
− | उषा के छू आरक्त कपोल | + | उषा के छू आरक्त कपोल |
− | किलक पडता तेरा उन्माद | + | किलक पडता तेरा उन्माद, |
− | देख तारों के बुझते प्राण | + | देख तारों के बुझते प्राण |
− | न जाने क्या आ जाता याद | + | न जाने क्या आ जाता याद? |
− | हेरती है सौरभ की हाट | + | हेरती है सौरभ की हाट |
− | कहो किस निर्मोही की बाट | + | कहो किस निर्मोही की बाट? |
− | चांदनी का श्रृंगार समेट | + | चांदनी का श्रृंगार समेट |
− | अधखुली आंखों की यह कोर | + | अधखुली आंखों की यह कोर, |
− | लुटा अपना यौवन अनमोल | + | लुटा अपना यौवन अनमोल |
− | ताकती किस अतीत की ओर | + | ताकती किस अतीत की ओर? |
− | जानते हो यह अभिनव प्यार | + | जानते हो यह अभिनव प्यार |
− | किसी दिन होगा कारगार | + | किसी दिन होगा कारगार? |
− | कौन है वह सम्मोहन राग | + | कौन है वह सम्मोहन राग |
− | खींच लाया तुमको सुकुमार | + | खींच लाया तुमको सुकुमार? |
− | तुम्हें भेजा जिसने इस देश | + | तुम्हें भेजा जिसने इस देश |
− | कौन वह है निष्ठुर करतार | + | कौन वह है निष्ठुर करतार? |
− | हंसो पहनो कांटों के हार | + | हंसो पहनो कांटों के हार |
− | मधुर भोलेपन का संसार!< | + | मधुर भोलेपन का संसार! |
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02:32, 23 सितम्बर 2009 के समय का अवतरण
मधुरिमा के, मधु के अवतार
सुधा से, सुषमा से, छविमान,
आंसुओं में सहमे अभिराम
तारकों से हे मूक अजान!
सीख कर मुस्काने की बान
कहां आऎ हो कोमल प्राण!
स्निग्ध रजनी से लेकर हास
रूप से भर कर सारे अंग,
नये पल्लव का घूंघट डाल
अछूता ले अपना मकरंद,
ढूढं पाया कैसे यह देश?
स्वर्ग के हे मोहक संदेश!
रजत किरणों से नैन पखार
अनोखा ले सौरभ का भार,
छ्लकता लेकर मधु का कोष
चले आऎ एकाकी पार;
कहो क्या आऎ हो पथ भूल?
मंजु छोटे मुस्काते फूल!
उषा के छू आरक्त कपोल
किलक पडता तेरा उन्माद,
देख तारों के बुझते प्राण
न जाने क्या आ जाता याद?
हेरती है सौरभ की हाट
कहो किस निर्मोही की बाट?
चांदनी का श्रृंगार समेट
अधखुली आंखों की यह कोर,
लुटा अपना यौवन अनमोल
ताकती किस अतीत की ओर?
जानते हो यह अभिनव प्यार
किसी दिन होगा कारगार?
कौन है वह सम्मोहन राग
खींच लाया तुमको सुकुमार?
तुम्हें भेजा जिसने इस देश
कौन वह है निष्ठुर करतार?
हंसो पहनो कांटों के हार
मधुर भोलेपन का संसार!