<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
<td rowspan=2> <font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td> '''शीर्षक: '''नया राष्ट्रगीतवह कैसे कहेगी<br> '''रचनाकार:''' [[श्रीकान्त जोशी अशोक वाजपेयी]]</td>
</tr>
</table>
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
रोटी रोटी रोटीबड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटीरोटी रोटी रोटी।जिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटीरोटी रोटी रोटी। अपने घर में रखें करोड़ों बाहर दिखें भिखारीसहसा नहीं समझ में आती ऐसों की मक्कारीउधर करोड़ों जुटा न पाते तन पर एक लंगोटीरोटी रोटी रोटी। शोर बहुत है जन या हरिजन सब मरते हैं उनसेमहाजनियों की छुपी हुक़ूमत में सब झुलसे-झुलसेचेहरे पर तह बेशरमी की कितनी मोटी-मोटीवह कैसे कहेगी – हाँ!रोटी रोटी रोटी। हाँ कहेंगेउसके अनुरक्त नेत्रपैसों के बल टिका हुआ है प्रजातंत्र का खंबाबिका हुआ ईश्वर रच सकता यह मनहूस अचंभाजमा रहे हैं बेटाउसके उदग्र-बेटी, दौलत सत्ता-गोटीउत्सुक कुचाग्ररोटी रोटी रोटी। बर्फ़ हिमालय उसकी देह की चोटी की मुझको दिखती कालीचकित धूपकाली का खप्पर ख़ाली है नाच रही दे तालीमैं देता हूँ, वो ले आकर, मेरी बोटी-बोटीरोटी रोटी रोटी।बड़ी उम्र होती है जिसकी ख़ातिर छोटी-छोटीउसके आर्द्र अधरजिनके हाथों में झण्डे हैं उनकी नीयत खोटीकहेंगे – हाँरोटी रोटी रोटी।वह कैसे कहेगी – हाँ ?
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