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{{KKCatKavita}}
<poem>नहीं मालूम क्यों यहाँ आया<br>ठोकरें खाते हुए दिन बीते ।<br>बीते।उठा तो पर न सँभलने पाया<br>गिरा व रह गया आँसू पीते ।<br><br>पीते।
ताब बेताब हुई हठ भी हटी<br>नाम अभिमान का भी छोड़ दिया ।<br>दिया।देखा तो थी माया की डोर कटी<br>सुना व' वह कहते हैं, हाँ खूब किया ।<br><br>किया।
पर अहो पास छोड़ आते ही<br>वह सब भूत फिर सवार हुए ।<br>हुए।मुझे गफलत में ज़रा पाते ही<br>फिर वही पहले के से वार हुए ।<br><br>हुए।
एक भी हाथ सँभाला न गया<br>और कमज़ोरों का बस क्या है ।<br>है।कहा - निर्दय, कहाँ है तेरी दया,<br>मुझे दुख देने में जस क्या है ।<br><br>है।
रात को सोते य' यह सपना देखा<br>कि व' वह कहते हैं "तुम हमारे हो<br>भला अब तो मुझे अपना देखा,<br>कौन कहता है कि तुम हारे हो ।<br><br>हो।
अब अगर कोई भी सताये तुम्हें<br>तो मेरी याद वहीं कर लेना<br>नज़र क्यों काल ही न आये तुम्हें<br>प्रेम के भाव तुर्त तुरत भर लेना" ।<br><br/poem>