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− | छोड़ द्रुमों की मृदु छाया | + | छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया, |
− | तोड़ प्रकृति से भी माया | + | तोड़ प्रकृति से भी माया, |
+ | :बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? | ||
+ | :::भूल अभी से इस जग को! | ||
+ | तज कर तरल-तरंगों को, | ||
+ | इन्द्-रधनुष के रंगों को, | ||
+ | :तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन? | ||
+ | :::भूल अभी से इस जग को! | ||
+ | कोयल का वह कोमल-बोल, | ||
+ | मधुकर की वीणा अनमोल, | ||
+ | :कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन? | ||
+ | :::भूल अभी से इस जग को! | ||
+ | ऊषा-सस्मित किसलय-दल, | ||
+ | सुधा रश्मि से उतरा जल, | ||
+ | :ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहाला दूँ जीवन? | ||
+ | :::भूल अभी से इस जग को! | ||
− | + | '''रचनाकाल: जनवरी १९१८''' | |
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21:24, 22 दिसम्बर 2009 का अवतरण
छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया,
तोड़ प्रकृति से भी माया,
बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन?
भूल अभी से इस जग को!
तज कर तरल-तरंगों को,
इन्द्-रधनुष के रंगों को,
तेरे भ्रू-भंगों से कैसे बिंधवा दूँ निज मृग-सा मन?
भूल अभी से इस जग को!
कोयल का वह कोमल-बोल,
मधुकर की वीणा अनमोल,
कह, तब तेरे ही प्रिय-स्वर से कैसे भर लूँ सजनि! श्रवन?
भूल अभी से इस जग को!
ऊषा-सस्मित किसलय-दल,
सुधा रश्मि से उतरा जल,
ना, अधरामृत ही के मद में कैसे बहाला दूँ जीवन?
भूल अभी से इस जग को!
रचनाकाल: जनवरी १९१८