भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बापू / सुमित्रानंदन पंत" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत }}<poem>चरमोन्नत जग में जब कि आज व…)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत  
 
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत  
}}<poem>चरमोन्नत जग में जब कि आज विज्ञान ज्ञान,
+
|संग्रह=ग्राम्‍या / सुमित्रानंदन पंत
 +
}}
 +
<poem>
 +
चरमोन्नत जग में जब कि आज विज्ञान ज्ञान,
 
बहु भौतिक साधन, यंत्र यान, वैभव महान,
 
बहु भौतिक साधन, यंत्र यान, वैभव महान,
सेवक हैं विद्युत वाष्प शक्ति; धन बल नितांत,
+
सेवक हैं विद्युत वाष्प शक्ति: धन बल नितांत,
 
फिर क्यों जग में उत्पीड़न? जीवन यों अशांत?
 
फिर क्यों जग में उत्पीड़न? जीवन यों अशांत?
  
मानव नें पाई देश काल पर जय निश्च्य,
+
मानव नें पाई देश काल पर जय निश्चय,
 
मानव के पास नहीं मानव का आज हृदय!
 
मानव के पास नहीं मानव का आज हृदय!
चर्चित उसका विज्ञान ज्ञान; वह नहीं वंचित;
+
चर्वित उसका विज्ञान ज्ञान: वह नहीं पचित;
 
भौतिक मद से मानव आत्मा हो गई विजित!
 
भौतिक मद से मानव आत्मा हो गई विजित!
 
 
है श्लाघ्य मनुज का भौतिक संचय का प्रयास,
 
है श्लाघ्य मनुज का भौतिक संचय का प्रयास,
 
मानवी भावना का क्या पर उसमें विकास?
 
मानवी भावना का क्या पर उसमें विकास?
पंक्ति 18: पंक्ति 20:
  
 
बापू! तुम पर हैं आज लगे जग के लोचन,
 
बापू! तुम पर हैं आज लगे जग के लोचन,
तुम खोल नहीं पाओगे मानव के बंधन?</poem>
+
तुम खोल नहीं जाओगे मानव के बंधन?
 +
 
 +
रचनाकाल: दिसंबर’ ३९
 +
</poem>

17:30, 30 अप्रैल 2010 का अवतरण

चरमोन्नत जग में जब कि आज विज्ञान ज्ञान,
बहु भौतिक साधन, यंत्र यान, वैभव महान,
सेवक हैं विद्युत वाष्प शक्ति: धन बल नितांत,
फिर क्यों जग में उत्पीड़न? जीवन यों अशांत?

मानव नें पाई देश काल पर जय निश्चय,
मानव के पास नहीं मानव का आज हृदय!
चर्वित उसका विज्ञान ज्ञान: वह नहीं पचित;
भौतिक मद से मानव आत्मा हो गई विजित!
है श्लाघ्य मनुज का भौतिक संचय का प्रयास,
मानवी भावना का क्या पर उसमें विकास?
चाहिये विश्व को आज भाव का नवोन्मेष,
मानव उर में फिर मानवता का हो प्रवेश!

बापू! तुम पर हैं आज लगे जग के लोचन,
तुम खोल नहीं जाओगे मानव के बंधन?

रचनाकाल: दिसंबर’ ३९