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"कण्डा / अशोक कुमार पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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तुम्हारी दुनिया में इस तरह
 
सिंदूर बनकर तुम्हारे सिर पर
 
सिंदूर बनकर तुम्हारे सिर पर
 
 
सवार नहीं होना चाहता हूं
 
सवार नहीं होना चाहता हूं
 
 
न बिछुआ बन कर डस लेना चाहता हूं
 
न बिछुआ बन कर डस लेना चाहता हूं
 
 
तुम्हारे कदमों की उड़ान
 
तुम्हारे कदमों की उड़ान
 
 
चूड़ियों की जंजीर में नहीं जकड़ना चाहता
 
चूड़ियों की जंजीर में नहीं जकड़ना चाहता
 
 
तुम्हारी कलाईयों की लय
 
तुम्हारी कलाईयों की लय
 
 
न मंगलसूत्र बन झुका देना चाहता हूं
 
न मंगलसूत्र बन झुका देना चाहता हूं
 
 
तुम्हारी उन्नत ग्रीवा
 
तुम्हारी उन्नत ग्रीवा
 
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किसी वचन की बर्फ में
किसी वचन की ब्फ़ में
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नही सोखना चाहता तुम्हारी देह का ताप
 
नही सोखना चाहता तुम्हारी देह का ताप
 
 
बस आंखो से
 
बस आंखो से
 
 
बीजना चाहता हूं विश्वास
 
बीजना चाहता हूं विश्वास
 
 
और दाख़िल हो जाना चाहता हूं
 
और दाख़िल हो जाना चाहता हूं
 
 
ख़ामोशी से तुम्हारी दुनिया में
 
ख़ामोशी से तुम्हारी दुनिया में
 
 
जैसे आंखों में दाख़िल हो जाती है नींद
 
जैसे आंखों में दाख़िल हो जाती है नींद
 
 
जैसे नींद में दाख़िल हो जाते हैं स्वप्न
 
जैसे नींद में दाख़िल हो जाते हैं स्वप्न
 
 
जैसे स्वप्न में दाख़िल हो जाती है बेचैनी
 
जैसे स्वप्न में दाख़िल हो जाती है बेचैनी
 
 
जैसे बेचैनी में दाख़िल हो जाती हैं उम्मीदें
 
जैसे बेचैनी में दाख़िल हो जाती हैं उम्मीदें
 
 
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15:18, 8 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

तुम्हारी दुनिया में इस तरह
सिंदूर बनकर तुम्हारे सिर पर
सवार नहीं होना चाहता हूं
न बिछुआ बन कर डस लेना चाहता हूं
तुम्हारे कदमों की उड़ान
चूड़ियों की जंजीर में नहीं जकड़ना चाहता
तुम्हारी कलाईयों की लय
न मंगलसूत्र बन झुका देना चाहता हूं
तुम्हारी उन्नत ग्रीवा
किसी वचन की बर्फ में
नही सोखना चाहता तुम्हारी देह का ताप
बस आंखो से
बीजना चाहता हूं विश्वास
और दाख़िल हो जाना चाहता हूं
ख़ामोशी से तुम्हारी दुनिया में
जैसे आंखों में दाख़िल हो जाती है नींद
जैसे नींद में दाख़िल हो जाते हैं स्वप्न
जैसे स्वप्न में दाख़िल हो जाती है बेचैनी
जैसे बेचैनी में दाख़िल हो जाती हैं उम्मीदें