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"एक ही ग़म / निदा फ़ाज़ली" के अवतरणों में अंतर
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अगर कब्रिस्तान में | अगर कब्रिस्तान में |
18:03, 11 अक्टूबर 2020 के समय का अवतरण
अगर कब्रिस्तान में
अलग-अलग
कत्बे न हों
तो हर कब्र में
एक ही ग़म सोया हुआ होता है
-किसी माँ का बेटा
किसी भाई की बहन
किसी आशिक की महबूबा
तुम-
किसी कब्र पर भी
फ़ातिहा पढ़ के चले आओ