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"इंतज़ार-1 / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर
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06:20, 16 मई 2013 का अवतरण
तुम्हारे ना कहने के बाद भी
क्यों है
तुम्हारा इंतज़ार
लगता है कि तुम आओगी ।
बार-बार आहट सुनता हूँ
और खोलकर देखता हूँ-
घर का दरवाज़ा
इंतज़ार में तुम्हारे
अब मैं ही बन गया हूँ दरवाज़ा
और खड़ा हूँ घर के बाहर
इंतज़ार में ठहर गई है ज़िदगी
मुझ निर्जीव को
तुम्हारे स्पर्श का इंतज़ार है ।