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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन फ़ाकिर
}} [[Category:गज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>सामने है जो उसे लोग बुरा कहते हैं जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा कहते हैं
सामने है जो उसे लोग बुरा ज़िन्दगी को भी सिला कहते हैं <br>कहनेवाले जिसको देखा ही नहीं उसको ख़ुदा जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा कहते हैं <br><br>
ज़िन्दगी को फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी सिला कहते हैं कहनेवाले <br>जीनेवाले तो गुनाहों की सज़ा दवा कहते हैं <br><br>
फ़ासले उम्र के कुछ और बढा़ देती है <br>जाने क्यूँ लोग उसे फिर भी दवा कहते हैं <br><br> चंद मासूम से पत्तों का लहू है "फ़ाकिर" <br>जिसको महबूब के हाथों की हिना कहते हैं <br><br/poem>
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