भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"घटने लगी है कहानी / अर्चना भैंसारे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=अर्चना भैंसारे  
+
|रचनाकार=अर्चना भैंसारे
|संग्रह=
+
|अनुवादक=
 +
|संग्रह=कुछ बूढ़ी उदास औरतें / अर्चना भैंसारे
 
}}
 
}}
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
<Poem>
+
<poem>
 
माँ सुनाती है कहानी
 
माँ सुनाती है कहानी
 
जो सुन रखी थी उनने
 
जो सुन रखी थी उनने

15:53, 3 नवम्बर 2013 के समय का अवतरण

माँ सुनाती है कहानी
जो सुन रखी थी उनने
अपनी माँ से
और उनकी माँ ने
अपनी माँ से

सोचती हूँ
मैं भी सुनाऊंगी कहानी
अपने बच्चों को
इस तरह
चलती रहेगी कहानी पीढ़ी-दर-पीढ़ी

पर देखती हूँ कि
घटने लगी है तुलसी-चौबारे की तरह कहानी

और उठने लगे हैं
आंगन से
कहानियाँ सुनते-सुनाते लोग।