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क़तरःए-शबनमे-अश्क
क़तरःए-शबनमे-दिल, ख़ूने-जिगर
क़तरःए-नीम नज़र<ref>तिरछी नज़र</ref>
या मुलाक़ात के लम्हों के सुनहरी क़तरे
जो निगाहों की हरारत से टपक पड़ते हैं
और फिर लम्स के नूर<ref>स्पर्श का प्रकाश् </ref>
और फिर बात की ख़ुशबू में बदल जाते हैं
मुझको यह क़तर-ए-शादाब भी चख लेने दो