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"ऎसा आदमी था मैं / असद ज़ैदी" के अवतरणों में अंतर

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ऎसा आदमी था मैं कि हॊंठ नहीं थे
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ऐसा आदमी था मैं कि होंठ नहीं थे
 
बोल नहीं सकता था जो सोचता था
 
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कि अन्दर ही अन्दर ख़ुश रहता था
 
कि अन्दर ही अन्दर ख़ुश रहता था

18:23, 30 अगस्त 2015 के समय का अवतरण

ऐसा आदमी था मैं कि होंठ नहीं थे
बोल नहीं सकता था जो सोचता था
कि अन्दर ही अन्दर ख़ुश रहता था
और चुपचाप रोता था

मैं जानता था कि होंठ नहीं थे मैंने प्यार किया
और सँभल-सँभल कर लिए फ़ैसले ठीक नहीं थे
फिर सोचा ठीक है यह भी

दहशत भरे दौर गुज़रे होंठ नहीं थे
जिन्हें जाना था उठकर जा चुके मैं बोला तक नहीं
मेरे रोंगटे अभी तक खड़े हैं ऎसी थी दारुण प्यास