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"पीड़ा का आनन्द / श्रीकृष्ण सरल" के अवतरणों में अंतर
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जो कष्ट दूसरे के हैं ओढ़ लिया करते | जो कष्ट दूसरे के हैं ओढ़ लिया करते | ||
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वह कष्ट नहीं होता, आनन्द कहाता है, | वह कष्ट नहीं होता, आनन्द कहाता है, | ||
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कहने वाले कहते, वह पीड़ा भुगत रहा | कहने वाले कहते, वह पीड़ा भुगत रहा | ||
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उस पीड़ा में भी वह मिठास ही पाता है। | उस पीड़ा में भी वह मिठास ही पाता है। | ||
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हम व्यक्ति राष्ट्र या फिर समाज के दुख बाँटे | हम व्यक्ति राष्ट्र या फिर समाज के दुख बाँटे | ||
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अनुभूति नहीं फिर दुख की कोई भी करता | अनुभूति नहीं फिर दुख की कोई भी करता | ||
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वह यही गर्व करता, मैं नहीं अकेला हूँ | वह यही गर्व करता, मैं नहीं अकेला हूँ | ||
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वह तो सुख का अनुभव करता, जो दुख हरता । | वह तो सुख का अनुभव करता, जो दुख हरता । | ||
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हम अगर किसी का धन बाँटें, दुख पाएँगे | हम अगर किसी का धन बाँटें, दुख पाएँगे | ||
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हम कष्ट किसी के बाँटे, मन को सुख होगा | हम कष्ट किसी के बाँटे, मन को सुख होगा | ||
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सुख के बाँटे सुख मिलता, दुख के बाँटे दुख | सुख के बाँटे सुख मिलता, दुख के बाँटे दुख | ||
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यह नियम प्रकृति का अटल, न कभी विमुख होगा। | यह नियम प्रकृति का अटल, न कभी विमुख होगा। |
17:24, 9 दिसम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: श्रीकृष्ण सरल
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जो कष्ट दूसरे के हैं ओढ़ लिया करते
वह कष्ट नहीं होता, आनन्द कहाता है,
कहने वाले कहते, वह पीड़ा भुगत रहा
उस पीड़ा में भी वह मिठास ही पाता है।
हम व्यक्ति राष्ट्र या फिर समाज के दुख बाँटे
अनुभूति नहीं फिर दुख की कोई भी करता
वह यही गर्व करता, मैं नहीं अकेला हूँ
वह तो सुख का अनुभव करता, जो दुख हरता ।
हम अगर किसी का धन बाँटें, दुख पाएँगे
हम कष्ट किसी के बाँटे, मन को सुख होगा
सुख के बाँटे सुख मिलता, दुख के बाँटे दुख
यह नियम प्रकृति का अटल, न कभी विमुख होगा।