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"सन्नाटा / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर

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कलरव घर में नहीं रहा सन्नाटा पसरा है
 
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सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है ।
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पानी ठहरा जहाँ, वहाँ पर
 
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पत्थर बहता है
 
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अपराधी ने देश बचाया
 
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हाक़िम कहता है
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हाक़िम का भी अपराधी से रिश्ता गहरा है ।
 
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हँसता हूँ जब तुम कबीर की
 
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साखी देते हो
 
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पैर काटकर लोगों को
 
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बैसाखी देते हो
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दहशत में है आम आदमी, तुमसे ख़तरा है ।
 
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ठगा गया है आम आदमी
 
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आया धोखे में
 
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घर में भूत जमाए डेरा
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देव झरोखे में
 
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गूंगों की पंचायत करने वाला बहरा है ।
  
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भैंसे की मन्नत माने हो
 
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भैंसा काटोगे
 
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तेरी बारी है चोरी की, तेरा पहरा है ।
तेरी बारी है चोरी की, तेरा पहरा है।
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</poem>

13:50, 4 जनवरी 2011 का अवतरण

कलरव घर में नहीं रहा सन्नाटा पसरा है सुबह-सुबह ही सूरज का मुँह उतरा-उतरा है ।

पानी ठहरा जहाँ, वहाँ पर पत्थर बहता है अपराधी ने देश बचाया हाक़िम कहता है हाक़िम का भी अपराधी से रिश्ता गहरा है ।

हँसता हूँ जब तुम कबीर की साखी देते हो पैर काटकर लोगों को बैसाखी देते हो दहशत में है आम आदमी, तुमसे ख़तरा है ।

ठगा गया है आम आदमी आया धोखे में घर में भूत जमाए डेरा देव झरोखे में गूंगों की पंचायत करने वाला बहरा है ।


जैसा तुम बोओगे भाई ! वैसा काटोगे भैंसे की मन्नत माने हो भैंसा काटोगे तेरी बारी है चोरी की, तेरा पहरा है । </poem>