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{{KKRachna
|रचनाकार=रामधारी सिंह 'दिनकर'
|संग्रह=रसवन्ती / रामधारी सिंह "दिनकर"
}}
{{KKCatKavita}}<poem>माथे में सेंदूर पर छोटी दो बिंदी चमचम-सी,<br>पपनी पर आँसू की बूँदें मोती-सी, शबनम-सी।<br>::लदी हुई कलियों में मादक ::टहनी एक नरम-सी,<br>::यौवन की विनती-सी भोली, ::गुमसुम खड़ी शरम-सी।<br><br> पीला चीर, कोर में जिसकी जिसके चकमक गोटा-जाली,<br>चली पिया के गांव उमर के सोलह फूलोंवाली।<br>फूलों वाली। ::पी चुपके आनंद, उदासी ::भरे सजल चितवन में,<br>::आँसू में भींगी माया ::चुपचाप खड़ी आंगन में।<br><br> आँखों में दे आँख हेरती हैं उसको जब सखियाँ,<br>मुस्की आ जाती मुख पर, हँस देती रोती अँखियाँ।<br>::पर, समेट लेती शरमाकर ::बिखरी-सी मुस्कान,<br>::मिट्टी उकसाने लगती है ::अपराधिनी-समान।<br><br> भींग रहा मीठी उमंग से दिल का कोना-कोना,<br>भीतर-भीतर हँसी देख लो, बाहर-बाहर रोना।<br>::तू वह, जो झुरमुट पर आयी ::हँसती कनक-कली-सी,<br>::तू वह, जो फूटी शराब की ::निर्झरिणी पतली-सी।<br><br> तू वह, रचकर जिसे प्रकृति ने अपना किया सिंगार,<br>तू वह जो धूसर में आयी सुबज रंग की धार।<br>::मां की ढीठ दुलार! पिता की ::ओ लजवंती भोली,<br>::ले जायेगी हिय की मणि को ::अभी पिया की डोली।<br><br> कहो, कौन होगी इस घर की तब शीतल उजियारी?<br>किसे देख हँस-हँस कर फूलेगी सरसों की क्यारी?<br>::वृक्ष रीझ कर किसे करेंगे ::पहला फल अर्पण-सा?<br>::झुकते किसको देख पोखरा ::चमकेगा दर्पण-सा?<br><br> किसके बाल ओज भर देंगे खुलकर मंद पवन में?<br>पड़ जायेगी जान देखकर किसको चंद्र-किरन में?<br>::महँ-महँ कर मंजरी गले से ::मिल किसको चूमेगी?<br>::कौन खेत में खड़ी फ़सल ::की देवी-सी झूमेगी?<br><br> बनी फिरेगी कौन बोलती प्रतिमा हरियाली की?<br>कौन रूह होगी इस धरती फल-फूलों वाली की?<br>::हँसकर हृदय पहन लेता जब ::कठिन प्रेम-ज़ंजीर,<br>::खुलकर तब बजते न सुहागिन, ::पाँवों के मंजीर।<br><br> घड़ी गिनी जाती तब निशिदिन उँगली की पोरों पर,<br>प्रिय की याद झूलती है साँसों के हिंडोरों पर।<br>::पलती है दिल का रस पीकर ::सबसे प्यारी पीर,<br>::बनती है बिगड़ती रहती ::पुतली में तस्वीर।<br><br> पड़ जाता चस्का जब मोहक प्रेम-सुधा पीने का,<br>सारा स्वाद बदल जाता है दुनिया में जीने का।<br>::मंगलमय हो पंथ सुहागिन, ::यह मेरा वरदान;<br>::हरसिंगार की टहनी-से ::फूलें तेरे अरमान।<br><br> जगे हृदय को शीतल करनेवाली करने-वाली मीठी पीर,<br>निज को डुबो सके निज में, मन हो इतना गंभीर।<br>::छाया करती रहे सदा ::तुझको सुहाग की छाँह,<br>::सुख-दुख में ग्रीवा के नीचे हो प्रियतम ::रहे पिया की बाँह।<br><br> पल-पल मंगल-लग्न, ज़िंदगी के दिन-दिन त्यौहार,<br>उर का प्रेम फूटकर हो आँचल में उजली धार। <br><brpoem>
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