भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
 
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png]]</td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
 
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया<br>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: '''पहले की तरह<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[शीन काफ़ निज़ाम]]</td>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[अनिल जनविजय]]</td>
 
</tr>
 
</tr>
 
</table>
 
</table>
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
 
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none">
पहले ज़मीन बाँटी थी फिर घर भी बँट गया
+
पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
इन्सान अपने आप में कितना सिमट गया
+
लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर
 +
"अरे... सब-कुछ पहले जैसा है
 +
सब वैसा का वैसा है...
 +
पहले की तरह..."
  
अब क्या हुआ कि ख़ुद को मैं पहचानता नहीं
+
फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
मुद्दत हुई कि रिश्ते का कुहरा भी छँट गया  
+
लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा
  
हम मुन्तज़िर थे शाम से सूरज के, दोस्तो!
+
उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
लेकिन वो आया सर पे तो क़द अपना घट गया
+
फिर उस की आँखों में झाँका
  
गाँवों को छोड़ कर तो चले आए शहर में
+
मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
जाएँ किधर कि शहर से भी जी उचट गया
+
हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी
  
किससे पनाह मांगे कहाँ जाएँ क्या करें
+
चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
फिर आफ़ताब रात का घूँघट उलट गया
+
बरसों के बाद इस तरह मिले हम
 
+
पहले की तरह</pre>
सैलाब-ए-नूर में जो रहा मुझ से दूर-दूर
+
वो शख़्स फिर अन्धेरे में मुझसे लिपट गया
+
</pre>
+
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
<!----BOX CONTENT ENDS------>
 
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>
 
</div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>

00:16, 23 दिसम्बर 2009 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक: पहले की तरह
  रचनाकार: अनिल जनविजय
पहुँच अचानक उस ने मेरे घर पर
लाड़ भरे स्वर में कहा ठहर कर
"अरे... सब-कुछ पहले जैसा है
सब वैसा का वैसा है...
पहले की तरह..."

फिर शांत नज़र से उस ने मुझे घूरा
लेकिन कहीं कुछ रह गया अधूरा

उदास नज़र से मैं ने उसे ताका
फिर उस की आँखों में झाँका

मुस्काई वह, फिर चहकी चिड़िया-सी
हँसी ज़ोर से किसी बहकी गुड़िया-सी

चूमा उस ने मुझे, फिर सिर को दिया खम
बरसों के बाद इस तरह मिले हम
पहले की तरह