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"पसे-मर्ग मेरे मजार पर / ज़फ़र" के अवतरणों में अंतर
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पसे-मर्ग मेरे मजार पर जो दिया किसी ने जला दिया । | पसे-मर्ग मेरे मजार पर जो दिया किसी ने जला दिया । | ||
14:56, 8 मई 2009 का अवतरण
पसे-मर्ग मेरे मजार पर जो दिया किसी ने जला दिया ।
उसे आह! दामने-बाद ने सरेशाम ही से बुझा दिया ।।
मुझे दफ़्न करना तू जिस घड़ी, तो ये उससे कहना कि ए परी,
वो जो तेरा आशिक़े-जार था, तहे ख़ाक उसको दबा दिया ।
दमे-ग़ुस्ल से मेरे पेशतर उसे हमदमों ने ये सोचकर,
कहीं जावे उसका दिल दहल, मेरी लाश पर से हटा दिया ।
मेरी आँख झपकी थी एक पल, मेरे दिल ने चाहा कि उसके चल,
दिले बेक़रार ने ओ मियाँ! वहीं चुटकी लेके जगा दिया ।
मैंने दिल दिया, मैंने जान दी, मगर आह तूने न क़द्र की,
किसी बात को जो कभी कहा, उसे चुटकियों से उड़ा दिया ।