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"शहीद / ऐ वतन ऐ वतन" के अवतरणों में अंतर

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जलते भी गये केहते भी गये
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तू ना रोना, कि तू है भगत सिंह की माँ
आजादि के पर्वाने
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मर के भी लाल तेरा मरेगा नहीं
जीना तो उसी का जीना है
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डोली चढ़के तो लाते है दुल्हन सभी
जो मरना वतन् पे जाने
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हँसके हर कोई फाँसी चढ़ेगा नहीं
  
ए वतन् ए वतन्
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जलते भी गये कहते भी गये
हमको तेरी कसम्
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आज़ादी के परवाने
तेरी राहों मे
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जीना तो उसी का जीना है
जाँ तक् लुटा जायेगें
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जो मरना देश पर जाने
  
फूल् क्या चीज् है
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जब शहीदों की डोली उठे धूम से
तेरे कदमो पे हम्
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देशवालों तुम आँसू बहाना नहीं
भेंट् अपने सरों की
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पर मनाओ जब आज़ाद भारत का दिन
चढा जायेगें
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उस घड़ी तुम हमें भूल जाना नहीं
  
ए वतन् ए वतन्
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ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम
हमको तेरी कसम्
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तेरी राहों में जां तक लुटा जायेंगे
तेरी राहों मे
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फूल क्या चीज़ है तेरे कदमों पे हम
जाँ तक् लुटा जायेगें
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भेंट अपने सरों की चढ़ा जायेंगे
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ऐ वतन ऐ वतन
  
फूल् क्या चीज् है
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कोई पंजाब से, कोई महाराष्ट्र से
तेरे कदमो पे हम्
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कोई यूपी से है, कोई बंगाल से
भेंट् अपने सरों की
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तेरी पूजा की थाली में लाये हैं हम
चढा जायेगें
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फूल हर रंग के, आज हर डाल से
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नाम कुछ भी सही पर लगन एक है
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जोत से जोत दिल की जगा जायेंगे
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ऐ वतन ऐ वतन ...
  
कोई पंजाब् से
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तेरी जानिब उठी जो कहर की नज़र
कोई महाराशट्र से
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उस नज़र को झुका के ही दम लेंगे हम
कोइ यु पी से है
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तेरी धरती पे है जो कदम ग़ैर का
कोइ बंगाल् से
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उस कदम का निशां तक मिटा देंगे हम
 
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जो भी दीवार आयेगी अब सामने
कोई पंजाब् से
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ठोकरों से उसे हम गिरा जायेंगे
कोई महाराशट्र से
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कोइ यु पी से है
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कोइ बंगाल् से
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तेरी पुजा कि थालि मे
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तेरी पुजा कि थालि मे
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लाये है हम्
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फूल् हर् रंग् के
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आज् हर् डाल् से
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नाम् कुछ् भी सही
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पर् लगन् एक् है
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ज्योत् से ज्योत् दिल् की
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जागा जायेंगे
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ए वतन् ए वतन्
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हमको तेरी कसम्
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तेरी राहों मे
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जाँ तक् लुटा जायेगें
+
 
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तेरी जानिब् उठी
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जो कैहर् की नजर्
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उस् नजर् को झुका के ही
+
दम् लेगें हम्
+
 
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तेरी जानिब् उठी
+
जो कैहर् की नजर्
+
उस् नजर् को झुका के ही
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दम् लेगें हम्
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तेरी धरती पे है जो
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कदम् गैर् के
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उस् कदम् के निशान् तक्
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मिटा देगें हम्
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उस् कदम् के निशान् तक्
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मिटा देगें हम्
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जो भी दीवार् आयेगी अब् सामने
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ठोकोरों से उसे हम् गिरा जायेगें
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ए वतन् ए वतन्
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हमको तेरी कसम्
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तेरी राहों मे
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जाँ तक् लुटा जायेगें
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ए वतन् ए वतन्</poem>
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21:25, 19 मार्च 2010 के समय का अवतरण

रचनाकार: प्रेम धवन                 

तू ना रोना, कि तू है भगत सिंह की माँ
मर के भी लाल तेरा मरेगा नहीं
डोली चढ़के तो लाते है दुल्हन सभी
हँसके हर कोई फाँसी चढ़ेगा नहीं

जलते भी गये कहते भी गये
आज़ादी के परवाने
जीना तो उसी का जीना है
जो मरना देश पर जाने

जब शहीदों की डोली उठे धूम से
देशवालों तुम आँसू बहाना नहीं
पर मनाओ जब आज़ाद भारत का दिन
उस घड़ी तुम हमें भूल जाना नहीं

ऐ वतन ऐ वतन हमको तेरी क़सम
तेरी राहों में जां तक लुटा जायेंगे
फूल क्या चीज़ है तेरे कदमों पे हम
भेंट अपने सरों की चढ़ा जायेंगे
ऐ वतन ऐ वतन

कोई पंजाब से, कोई महाराष्ट्र से
कोई यूपी से है, कोई बंगाल से
तेरी पूजा की थाली में लाये हैं हम
फूल हर रंग के, आज हर डाल से
नाम कुछ भी सही पर लगन एक है
जोत से जोत दिल की जगा जायेंगे
ऐ वतन ऐ वतन ...

तेरी जानिब उठी जो कहर की नज़र
उस नज़र को झुका के ही दम लेंगे हम
तेरी धरती पे है जो कदम ग़ैर का
उस कदम का निशां तक मिटा देंगे हम
जो भी दीवार आयेगी अब सामने
ठोकरों से उसे हम गिरा जायेंगे