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{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रमा द्विवेदी}}{{KKCatKavita}}<poem>कोई कहता है हिंदी बेढ़ंगी कोई कहता है बैरंग चिठ्ठी। हिंदी तो है हिंद की भाषा, रची बसी भारत की मिट्टी॥
गैरों को गले लगाना,
प्रीति हमारी है यह कैसी?
अपनों को अपमानित करना,
रीति हमारी है यह कैसी?
कोई कहता है हिंदी बेढ़ंगी<br> कोई कहता है बैरंग चिठ्ठी।<br>हिंदी तो है हिंद की भाषा,<br>रची बसी भारत की मिट्टी॥ <br><br>गैरों को गले लगाना,<br>प्रीति हमारी है यह कैसी?<br>अपनों को अपमानित करना,<br>रीति हमारी है यह कैसी?<br><br>अपनी हिंदी अपनाने को,<br>यह रीति बदलनी ही होगी।<br>अंग्रेजी के प्रति मोह है जो,<br>यह सोच बदलनी ही होगी॥<br><br>  तब ही हम हिंदी से,<br>हिन्दुस्तान बनायेंगे।<br>पूर्ण स्वतंत्र होंगे तब ही,<br>जब सब हिंदी को अपनायेंगे॥ <br><br/poem>
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