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− | + | रेशम के दुपट्टे में टाँकती हैं सितारा | |
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− | + | पिछले दफ़ा मिले एक चुंबन की स्मृति | |
− | + | हीरे की तरह संजोती हैं अपने भीतर | |
− | + | प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ... | |
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− | + | प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ | |
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− | + | कल-कल करती बहती हैं | |
− | + | नाप लेती है सारा आसमान | |
− | + | किसी रस्सी से नहीं बंधती | |
− | + | प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ... | |
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20:09, 20 जनवरी 2010 का अवतरण
सप्ताह की कविता | शीर्षक: प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ-1 रचनाकार: मनीषा पांडेय |
रेशम के दुपट्टे में टाँकती हैं सितारा देह मल-मलकर नहाती हैं, करीने से सजाती हैं बाल आँखों में काजल लगाती हैं प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ... मन-ही-मन मुस्कुराती हैं अकेले में बात-बेबात चहकती आईने में निहारती अपनी छातियों को कनखियों से ख़ुद ही शरमाकर नज़रें फिराती हैं प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ... डाकिए का करती हैं इंतज़ार मन-ही-मन लिखती हैं जवाब आने वाले ख़त का पिछले दफ़ा मिले एक चुंबन की स्मृति हीरे की तरह संजोती हैं अपने भीतर प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ... प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ नदी हो जाती हैं और पतंग भी कल-कल करती बहती हैं नाप लेती है सारा आसमान किसी रस्सी से नहीं बंधती प्यार में डूबी हुई लड़कियाँ...