भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पंचवटी / मैथिलीशरण गुप्त / पृष्ठ १२" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मैथिलीशरण गुप्त |संग्रह=पंचवटी / मैथिलीशरण गुप…)
 
पंक्ति 11: पंक्ति 11:
 
{{KKCatKavita}}
 
{{KKCatKavita}}
 
<poem>
 
<poem>
 +
पक्षपातमय सानुरोध है, जितना अटल प्रेम का बोध,
 +
:उतना ही बलवत्तर समझो, कामिनियों का वैर-विरोध।
 +
होता है विरोध से भी कुछ, अधिक कराल हमारा क्रोध,
 +
:और, क्रोध से भी विशेष है, द्वेष-पूर्ण अपना प्रतिशोध॥
 +
 +
देख क्यों न लो तुम, मैं जितनी सुन्दर हूँ उतनी ही घोर,
 +
:दीख रही हूँ जितनी कोमल, हूँ उतनी ही कठिन-कठोर!"
 +
सचमुच विस्मयपूर्वक सबने, देखा निज समक्ष तत्काल-
 +
:वह अति रम्य रूप पल भर में, सहसा बना विकट-कराल!
 +
 +
सबने मृदु मारुत का दारुण, झंझा नर्तन देखा था,
 +
:सन्ध्या के उपरान्त तमी का, विकृतावर्तन देखा था!
 +
काल-कीट-कृत वयस-कुसुम-का,
  
 
<poem>
 
<poem>

12:54, 29 जनवरी 2010 का अवतरण

पक्षपातमय सानुरोध है, जितना अटल प्रेम का बोध,
उतना ही बलवत्तर समझो, कामिनियों का वैर-विरोध।
होता है विरोध से भी कुछ, अधिक कराल हमारा क्रोध,
और, क्रोध से भी विशेष है, द्वेष-पूर्ण अपना प्रतिशोध॥

देख क्यों न लो तुम, मैं जितनी सुन्दर हूँ उतनी ही घोर,
दीख रही हूँ जितनी कोमल, हूँ उतनी ही कठिन-कठोर!"
सचमुच विस्मयपूर्वक सबने, देखा निज समक्ष तत्काल-
वह अति रम्य रूप पल भर में, सहसा बना विकट-कराल!

सबने मृदु मारुत का दारुण, झंझा नर्तन देखा था,
सन्ध्या के उपरान्त तमी का, विकृतावर्तन देखा था!
काल-कीट-कृत वयस-कुसुम-का,