भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हम को गुमाँ था परियों जैसी शहजादी होगी / आलम खुर्शीद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=आलम खुर्शीद |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> हम को गुमाँ था पर…)
 
 
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
खाम ख्याली थी ये नफ़रत मीयादी होगी
 
खाम ख्याली थी ये नफ़रत मीयादी होगी
  
इक झोंके से हिल जाती है क्यों घर की बनियाद
+
इक झोंके से हिल जाती है क्यों घर की बुनियाद
 
इस की जड़ में चूक यक़ीनन बुनियादी होगी
 
इस की जड़ में चूक यक़ीनन बुनियादी होगी
  

11:56, 29 जनवरी 2010 के समय का अवतरण

हम को गुमाँ था परियों जैसी शहजादी होगी
किस को ख़बर थी वह भी महलों की बांदी होगी
 
काश! मुअब्बिर बतला देता पहले ही ताबीर
खुशहाली के ख़्वाब में इतनी बर्बादी होगी

सच लिक्खा था एक मुबस्सिर ने बरसों पहले
सच्चाई बातिल के दर पर फर्यादी होगी

इस ने तो सरतान की सूरत जाल बिछाए हैं
खाम ख्याली थी ये नफ़रत मीयादी होगी

इक झोंके से हिल जाती है क्यों घर की बुनियाद
इस की जड़ में चूक यक़ीनन बुनियादी होगी

इतने सारे लोग कहाँ ग़ायब हो जाते हैं
धरती के नीचे भी शायद आबादी होगी