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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: बलि-बलि जाऊँ<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: किस तरह मिलूँ तुम्हें<br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[श्रीधर पाठक]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[पवन करण]]</td>
 
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1.
+
किस तरह मिलूँ तुम्हें
  
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ
+
क्यों न खाली क्लास रूम में
बलि-बलि जाऊँ हियरा लगाऊँ
+
किसी बेंच के नीचे
हरवा बनाऊँ घरवा सजाऊँ
+
और पेंसिल की तरह पड़ा
मेरे जियरवा का, तन का, जिगरवा का
+
तुम चुपचाप उठाकर
मन का, मँदिरवा का प्यारा बसैया
+
रख लो मुझे बस्ते में
मैं बलि-बलि जाऊँ
+
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ
+
  
2.
+
क्यों न किसी मेले में
 +
और तुम्हारी पसन्द के रंग में
 +
रिबन की शक़्ल में दूँ दिखाई
 +
और तुम छुपाती हुई अपनी ख़ुशी
 +
खरीद लो मुझे
  
भोली-भोली बतियाँ, साँवली सुरतिया
+
या कि कुछ इस तरह मिलूँ
काली-काली ज़ुल्फ़ोंवाली मोहनी मुरतिया
+
जैसे बीच राह में टूटी
मेरे नगरवा का, मेरे डगरवा का
+
तुम्हारी चप्पल के लिए
मेरे अँगनवा का, क्वारा कन्हैया
+
बहुत ज़रूरी पिन
मैं बलि-बलि जाऊँ
+
भारत पै सैयाँ मैं बलि-बलि जाऊँ
+
 
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00:50, 15 फ़रवरी 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक: किस तरह मिलूँ तुम्हें
  रचनाकार: पवन करण
किस तरह मिलूँ तुम्हें

क्यों न खाली क्लास रूम में
किसी बेंच के नीचे
और पेंसिल की तरह पड़ा
तुम चुपचाप उठाकर
रख लो मुझे बस्ते में

क्यों न किसी मेले में
और तुम्हारी पसन्द के रंग में
रिबन की शक़्ल में दूँ दिखाई
और तुम छुपाती हुई अपनी ख़ुशी
खरीद लो मुझे

या कि कुछ इस तरह मिलूँ
जैसे बीच राह में टूटी
तुम्हारी चप्पल के लिए
बहुत ज़रूरी पिन