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"लाला क्यों है लाला / पुरुषोत्तम प्रतीक" के अवतरणों में अंतर

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सुखा दिया इसने सारा अपने मन का पानी
 
सुखा दिया इसने सारा अपने मन का पानी
 
खरे दाम में बेचा करता अपनी बेईमानी
 
खरे दाम में बेचा करता अपनी बेईमानी
::::ताले में जो बन्द पड़ा है
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:::ताले में जो बन्द पड़ा है
:::::धन है सारा काला
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रोटी देकर ख़ून चूसना इसका दया-धरम है
 
रोटी देकर ख़ून चूसना इसका दया-धरम है
 
परदेशों को देश बेचने में भी नहीं शरम है
 
परदेशों को देश बेचने में भी नहीं शरम है
::::रहा सदा भारी पलड़े में
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:::रहा सदा भारी पलड़े में
:::::ये सरकारी साला
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कोर्ट-कचहरी अस्पताल या जितने भी दफ़्तर हैं
 
कोर्ट-कचहरी अस्पताल या जितने भी दफ़्तर हैं

02:44, 14 फ़रवरी 2010 का अवतरण

सुनो साथियो तुम्हें बताएँ लाला क्यों है लाला
इसने ही ईजाद किया था
सबसे पहले ताला

सुखा दिया इसने सारा अपने मन का पानी
खरे दाम में बेचा करता अपनी बेईमानी
ताले में जो बन्द पड़ा है
धन है सारा काला

रोटी देकर ख़ून चूसना इसका दया-धरम है
परदेशों को देश बेचने में भी नहीं शरम है
रहा सदा भारी पलड़े में
ये सरकारी साला

कोर्ट-कचहरी अस्पताल या जितने भी दफ़्तर हैं
इसको सब गिरजा, गुरुद्वारे, मस्जिद हैं, मन्दिर हैं
जगह-जगह पर बैठे इसके
ईश्वर अल्ला ताला


रचनाकाल : 24 अक्तूबर 1978