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"प्रकृति की ओर / भरत प्रसाद" के अवतरणों में अंतर

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भर देता है।
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20:06, 17 फ़रवरी 2010 का अवतरण

सुना है-
ममता के स्वभाववश
माता की छाती से
झर-झर दूध छलकता है

मैं तो अल्हड़ बचपन से
झुकी हुई सांवली घटाओं में
धारासार दूध बरसता हुआ
देखता चला आ रहा हूँ।

आत्मविभोर कर देने वाला
यह विस्मय
मुझे प्रकृति के प्रति
अथाह कृतज्ञता से
भर देता है।