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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक: पाखण्ड-व्रत-कथा<br>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : खेलत फाग  <br>
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[कात्यायनी]]</td>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[रसखान]]</td>
 
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कविता में यह दन्द-फन्द
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रसखान
छल-छन्द, गन्द-भरभण्ड।
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खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै ।
चमचा-कलछुल-अल्टा-पल्टा
+
भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
जीवन से जयचन्द... ...
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गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
आलोचक
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जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥
ज्यों परमानन्द, आनन्द-कन्द-मतिमन्द... ...
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घट-घट में व्यापि डकार
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हे खण्ड-खण्ड पाखण्ड
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जय हो... जय हो... जय हो...
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जय-जय-जय-जय-जय हो...
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पों ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ ऽ
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19:19, 27 फ़रवरी 2010 का अवतरण

Lotus-48x48.png  सप्ताह की कविता   शीर्षक : खेलत फाग
  रचनाकार: रसखान
 रसखान
खेलत फाग सुहाग भरी, अनुरागहिं लालन क धरि कै ।
भारत कुंकुम, केसर की पिचकारिन में रंग को भरि कै ॥
गेरत लाल गुलाल लली, मनमोहन मौज मिटा करि कै ।
जात चली रसखान अली, मदमस्त मनी मन कों हरि कै ॥