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"होलिका पंचक / प्रतापनारायण मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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:::भारत सुत खेलत होरी ।।
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::भारत सुत खेलत होरी ।।
 
प्रथम अविद्या अगिनी बारिकै, सर्वसु फूँकि दियो री ।
 
प्रथम अविद्या अगिनी बारिकै, सर्वसु फूँकि दियो री ।
 
आलस बस पुरिखन के जस की, चूरि उड़ाइ बहोरी ।
 
आलस बस पुरिखन के जस की, चूरि उड़ाइ बहोरी ।
:::रंग सब भंग कियो री ।।
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::रंग सब भंग कियो री ।।
 
छकै परस्पर बैर बारुणी, सबको ज्ञान गयो री ।
 
छकै परस्पर बैर बारुणी, सबको ज्ञान गयो री ।
 
घरन-घरन भाइन-भाइन में, जूता उछरि रह्यो री ।
 
घरन-घरन भाइन-भाइन में, जूता उछरि रह्यो री ।
:::बकैं सब आपस में फोरी ।।
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::बकैं सब आपस में फोरी ।।
 
बड़े-बड़े बीरन के वंशज, बनि बैठे सब गोरी ।
 
बड़े-बड़े बीरन के वंशज, बनि बैठे सब गोरी ।
 
नाचि रिझावत परदेसिन को, लाज नहीं तनको री ।
 
नाचि रिझावत परदेसिन को, लाज नहीं तनको री ।
:::जु ले लहँगौ कौ छोरी ।।
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::जु ले लहँगौ कौ छोरी ।।
 
निज करतूत भयो मुख कारो, ताको सोच तज्यो री ।
 
निज करतूत भयो मुख कारो, ताको सोच तज्यो री ।
 
देखो यह परताप कुमति को, दुख में सुख समझ्यो री ।
 
देखो यह परताप कुमति को, दुख में सुख समझ्यो री ।
:::निलज सब देश भयो री ।।
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::निलज सब देश भयो री ।।
 
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03:31, 22 फ़रवरी 2010 का अवतरण

भारत सुत खेलत होरी ।।
प्रथम अविद्या अगिनी बारिकै, सर्वसु फूँकि दियो री ।
आलस बस पुरिखन के जस की, चूरि उड़ाइ बहोरी ।
रंग सब भंग कियो री ।।
छकै परस्पर बैर बारुणी, सबको ज्ञान गयो री ।
घरन-घरन भाइन-भाइन में, जूता उछरि रह्यो री ।
बकैं सब आपस में फोरी ।।
बड़े-बड़े बीरन के वंशज, बनि बैठे सब गोरी ।
नाचि रिझावत परदेसिन को, लाज नहीं तनको री ।
जु ले लहँगौ कौ छोरी ।।
निज करतूत भयो मुख कारो, ताको सोच तज्यो री ।
देखो यह परताप कुमति को, दुख में सुख समझ्यो री ।
निलज सब देश भयो री ।।