भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"होलिका पंचक / प्रतापनारायण मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र कुमार जैन |संग्रह=कहीं और / वीरेन्द्र…) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार= | + | |रचनाकार=प्रतापनारायण मिश्र |
− | |संग्रह= | + | |संग्रह= |
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | ::भारत सुत खेलत होरी ।। | |
प्रथम अविद्या अगिनी बारिकै, सर्वसु फूँकि दियो री । | प्रथम अविद्या अगिनी बारिकै, सर्वसु फूँकि दियो री । | ||
आलस बस पुरिखन के जस की, चूरि उड़ाइ बहोरी । | आलस बस पुरिखन के जस की, चूरि उड़ाइ बहोरी । | ||
− | + | ::रंग सब भंग कियो री ।। | |
छकै परस्पर बैर बारुणी, सबको ज्ञान गयो री । | छकै परस्पर बैर बारुणी, सबको ज्ञान गयो री । | ||
घरन-घरन भाइन-भाइन में, जूता उछरि रह्यो री । | घरन-घरन भाइन-भाइन में, जूता उछरि रह्यो री । | ||
− | + | ::बकैं सब आपस में फोरी ।। | |
बड़े-बड़े बीरन के वंशज, बनि बैठे सब गोरी । | बड़े-बड़े बीरन के वंशज, बनि बैठे सब गोरी । | ||
नाचि रिझावत परदेसिन को, लाज नहीं तनको री । | नाचि रिझावत परदेसिन को, लाज नहीं तनको री । | ||
− | + | ::जु ले लहँगौ कौ छोरी ।। | |
निज करतूत भयो मुख कारो, ताको सोच तज्यो री । | निज करतूत भयो मुख कारो, ताको सोच तज्यो री । | ||
देखो यह परताप कुमति को, दुख में सुख समझ्यो री । | देखो यह परताप कुमति को, दुख में सुख समझ्यो री । | ||
− | + | ::निलज सब देश भयो री ।। | |
</poem> | </poem> |
03:31, 22 फ़रवरी 2010 का अवतरण
भारत सुत खेलत होरी ।।
प्रथम अविद्या अगिनी बारिकै, सर्वसु फूँकि दियो री ।
आलस बस पुरिखन के जस की, चूरि उड़ाइ बहोरी ।
रंग सब भंग कियो री ।।
छकै परस्पर बैर बारुणी, सबको ज्ञान गयो री ।
घरन-घरन भाइन-भाइन में, जूता उछरि रह्यो री ।
बकैं सब आपस में फोरी ।।
बड़े-बड़े बीरन के वंशज, बनि बैठे सब गोरी ।
नाचि रिझावत परदेसिन को, लाज नहीं तनको री ।
जु ले लहँगौ कौ छोरी ।।
निज करतूत भयो मुख कारो, ताको सोच तज्यो री ।
देखो यह परताप कुमति को, दुख में सुख समझ्यो री ।
निलज सब देश भयो री ।।