भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"धन्य सुरेन्द्र / प्रतापनारायण मिश्र" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("धन्य सुरेन्द्र / प्रतापनारायण मिश्र" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 5: | पंक्ति 5: | ||
}} | }} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKAnthologyDeshBkthi}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | धनि-धनि भारत आरत के तुम एक मात्र | + | धनि-धनि भारत आरत के तुम एक मात्र हितकारी। |
− | धन्य सुरेन्द्र सकल गौरव के अद्वितीय | + | धन्य सुरेन्द्र सकल गौरव के अद्वितीय अधिकारी॥ |
− | कियो महाश्रम मातृभूमि हित निज तन मन धन | + | कियो महाश्रम मातृभूमि हित निज तन मन धन वारी। |
− | सहि न सके स्वधर्म निन्दा बस घोर विपति सिर | + | सहि न सके स्वधर्म निन्दा बस घोर विपति सिर धारी॥ |
− | उन्नति उन्नति बकत रहत निज मुख से बहुत | + | उन्नति उन्नति बकत रहत निज मुख से बहुत लबारी। |
− | करि दिखरावन हार आजु एक तुमही परत | + | करि दिखरावन हार आजु एक तुमही परत निहारी॥ |
− | दुख दै कै अपमान तुम्हारो कियो चहत | + | दुख दै कै अपमान तुम्हारो कियो चहत अविचारी। |
− | यह नहिं जानत शूर अंग कटि शोभ बढ़ावत | + | यह नहिं जानत शूर अंग कटि शोभ बढ़ावत भारी॥ |
− | धनि तुम धनि तुम कहँ जिन जायो सो पितु सो | + | धनि तुम धनि तुम कहँ जिन जायो सो पितु सो महतारी। |
− | परम धन्य तव पद प्रताप से भई भरत भुवि | + | परम धन्य तव पद प्रताप से भई भरत भुवि सारी॥ |
</poem> | </poem> |
16:18, 4 फ़रवरी 2017 के समय का अवतरण
धनि-धनि भारत आरत के तुम एक मात्र हितकारी।
धन्य सुरेन्द्र सकल गौरव के अद्वितीय अधिकारी॥
कियो महाश्रम मातृभूमि हित निज तन मन धन वारी।
सहि न सके स्वधर्म निन्दा बस घोर विपति सिर धारी॥
उन्नति उन्नति बकत रहत निज मुख से बहुत लबारी।
करि दिखरावन हार आजु एक तुमही परत निहारी॥
दुख दै कै अपमान तुम्हारो कियो चहत अविचारी।
यह नहिं जानत शूर अंग कटि शोभ बढ़ावत भारी॥
धनि तुम धनि तुम कहँ जिन जायो सो पितु सो महतारी।
परम धन्य तव पद प्रताप से भई भरत भुवि सारी॥