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"शहर के दुकाँदारो / जावेद अख़्तर" के अवतरणों में अंतर

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आँख कैसे झुकती है, साँस कैसे रुकती है
 
आँख कैसे झुकती है, साँस कैसे रुकती है
 
कैसे रह निकलती है, कैसे बात चलती है
 
कैसे रह निकलती है, कैसे बात चलती है
शौक की ज़बाँ क्या है तुम न जान पाओगे
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शौक़  की ज़बाँ क्या है तुम न जान पाओगे
  
 
वस्ल का सुकूँ क्या हैं, हिज्र का जुनूँ क्या है
 
वस्ल का सुकूँ क्या हैं, हिज्र का जुनूँ क्या है
हुस्न का फुसूँ<ref>जादू</ref> क्या है, इश्क के दुरूँ<ref>अंदर</ref> क्या है
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हुस्न का फ़ुसूँ<ref>जादू</ref> क्या है, इश्क़ के दुरूँ<ref>अंदर</ref> क्या है
तुम मरीज-ए-दानाई<ref>जिसे सोचने समझने का रोग हो</ref>, मस्लहत के शैदाई<ref>कूटनीति पसंद करने वाला</ref>
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तुम मरीज़-ए-दानाई<ref>जिसे सोचने समझने का रोग हो</ref>, मस्लहत के शैदाई<ref>कूटनीति पसंद करने वाला</ref>
राह ए गुमरहाँ क्या है तुम ना जान पाओगे
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राह ए गुमरहाँ क्या है तुम जान पाओगे
  
 
ज़ख़्म कैसे फलते हैं, दाग कैसे जलते हैं
 
ज़ख़्म कैसे फलते हैं, दाग कैसे जलते हैं
 
दर्द कैसे होता है, कोई कैसे रोता है
 
दर्द कैसे होता है, कोई कैसे रोता है
 
अश्क़ क्या है नाले<ref>दर्दभरी आवाज़</ref> क्या, दश्त क्या है छाले क्या
 
अश्क़ क्या है नाले<ref>दर्दभरी आवाज़</ref> क्या, दश्त क्या है छाले क्या
आह क्या फुगाँ<ref>फरियाद</ref> क्या है, तुम ना जान पाओगे
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आह क्या, फ़ुग़ाँ<ref>फ़रियाद</ref> क्या है, तुम जान पाओगे
  
 
नामुराद दिल कैसे सुबह-ओ-शाम करते हैं
 
नामुराद दिल कैसे सुबह-ओ-शाम करते हैं
 
कैसे जिंदा रहते हैं और कैसे मरते हैं
 
कैसे जिंदा रहते हैं और कैसे मरते हैं
तुमको कब नज़र आई ग़मज़र्दों<ref>दुखियारों</ref> की तनहाई
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तुमको कब नज़र आई ग़मज़दों<ref>दुखियारों</ref> की तनहाई
ज़ीस्त बे-अमाँ<ref>असुरक्षित जीवन</ref> क्या है तुम ना जान पाओगे
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ज़ीस्त बे-अमाँ<ref>असुरक्षित जीवन</ref> क्या है तुम जान पाओगे
  
जानता हूँ कि तुम को जौक-ए-शायरी<ref>शायरी का शौक</ref> भी है
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जानता हूँ कि तुम को ज़ौक़े-शायरी<ref>शायरी का शौक</ref> भी है
शख्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
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शख़्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
फिर भी हर्फ चुनते हो, सिर्फ लफ़्ज सुनते हो
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फिर भी हर्फ़ चुनते हो, सिर्फ लफ़्ज़ सुनते हो
इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम ना जान पाओगे
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इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम जान पाओगे
 
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21:43, 23 फ़रवरी 2010 का अवतरण

शहर के दुकाँदारो कारोबार-ए-उलफ़त में
सूद क्या ज़ियाँ<ref>नुकसान</ref> क्या है, तुम न जान पाओगे
दिल के दाम कितने हैं ख़्वाब कितने मँहगे हैं
और नकद-ए-जाँ क्या है तुम न जान पाओगे

कोई कैसे मिलता है, फूल कैसे खिलता है
आँख कैसे झुकती है, साँस कैसे रुकती है
कैसे रह निकलती है, कैसे बात चलती है
शौक़ की ज़बाँ क्या है तुम न जान पाओगे

वस्ल का सुकूँ क्या हैं, हिज्र का जुनूँ क्या है
हुस्न का फ़ुसूँ<ref>जादू</ref> क्या है, इश्क़ के दुरूँ<ref>अंदर</ref> क्या है
तुम मरीज़-ए-दानाई<ref>जिसे सोचने समझने का रोग हो</ref>, मस्लहत के शैदाई<ref>कूटनीति पसंद करने वाला</ref>
राह ए गुमरहाँ क्या है तुम न जान पाओगे

ज़ख़्म कैसे फलते हैं, दाग कैसे जलते हैं
दर्द कैसे होता है, कोई कैसे रोता है
अश्क़ क्या है नाले<ref>दर्दभरी आवाज़</ref> क्या, दश्त क्या है छाले क्या
आह क्या, फ़ुग़ाँ<ref>फ़रियाद</ref> क्या है, तुम न जान पाओगे

नामुराद दिल कैसे सुबह-ओ-शाम करते हैं
कैसे जिंदा रहते हैं और कैसे मरते हैं
तुमको कब नज़र आई ग़मज़दों<ref>दुखियारों</ref> की तनहाई
ज़ीस्त बे-अमाँ<ref>असुरक्षित जीवन</ref> क्या है तुम न जान पाओगे

जानता हूँ कि तुम को ज़ौक़े-शायरी<ref>शायरी का शौक</ref> भी है
शख़्सियत सजाने में इक ये माहिरी भी है
फिर भी हर्फ़ चुनते हो, सिर्फ लफ़्ज़ सुनते हो
इनके दरमियाँ क्या हैं, तुम न जान पाओगे

शब्दार्थ
<references/>